मौसम-ए-गुल में कम-नज़र चुनते रहे हैं ख़ार क्या हाथ है क्या लहू लहू दामन-ए-तार-तार क्या कार-गह-ए-हयात में जो है सनम-तराश है ऐसे सनम-कदे में हो शैख़ का ए'तिबार क्या ख़म ये सर-ए-नियाज़ है और भी मश्क़-ए-नाज़ हो ख़ूनीं हो जिस की आस्तीं उस को सितम में आर क्या देते रहे थे हम उन्हें पास-ए-वफ़ा का वास्ता इतनी सी बात थी मगर गुज़री है नागवार क्या माना कि आस्तीन में लात-ओ-हुबल छुपे हुए फिर भी सफ़-ए-नमाज़ में शैख़ है बा-वक़ार क्या जाने क़ुसूर क्या हुआ साक़ी ने क्यों उठा दिया बैठ के मय-कदे में हम पीते थे मुस्तआ'र क्या ताइर-ए-पर-बुरीदा हो 'मंज़र' अगर क़फ़स-नसीब उस की नज़र में क्या ख़िज़ाँ उस के लिए बहार क्या