मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए ताज़ा हवा पे बंद न दरवाज़ा कीजिए या छेड़िए न मंज़र-ए-नादीदनी का ज़िक्र या मिस्ल-ए-आफ़्ताब बहम ग़ाज़ा कीजिए या लब पे लाइए न परेशानियों की बात या जम्अ बैठ कर कभी शीराज़ा कीजिए बहलाएँ दिल को ख़्वाब-ए-ख़ुश-आइंद से न क्यूँ क्या फ़ाएदा कि ज़ख़्म-ए-कुहन ताज़ा कीजिए इस दौर में कि चेहरे ही 'अंजुम' हुए हैं मस्ख़ क्या ख़त्त-ओ-ख़ाल से तिरे अंदाज़ा कीजिए