मौसम-ए-गुल में कोई कब होश-मंदाना चला फूल देखे जिस ने काँटों में वो दीवाना चला एक ही मंज़िल पे हर राही को जाना था मगर ज़ोम-ए-बातिल में चला जो भी जुदागाना चला उस के हर इक गाम पर थी कामरानी साथ साथ कारगाह-ए-दहर में जो सरफ़रोशाना चला वा'इज़ान-ए-कम-नज़र हैं दुश्मन-ए-तमकीन-ए-होश मिट गया वो इन की बातों पर जो दीवाना चला मय-कदे में रंज-ओ-ग़म कैसा कहाँ की मुश्किलें हर ख़लिश जाती रही जब दौर-ए-पैमाना चला आफ़रीं सद आफ़रीं ये हिम्मत ज़ौक़-ए-तलब शम्अ' के जलते ही जल मरने को परवाना चला कोई असरार मशिय्यत हो न पाया आश्कार बे-ख़बर आया था 'कशफ़ी' और बेगाना चला