मौसमों के दुख ने दरिया से रवानी छीन ली वक़्त के आसेब ने हम से जवानी छीन ली हम तो फिर भी बे-हुनर थे हिजरतों के ख़ौफ़ ने ताएरों से ख़्वाहिश-ए-नक़्ल-ए-मकानी छीन ली पहले मेरे गिर्द उस ने ख़ौफ़ के जाले बुने फिर मिरे सर से रिदा-ए-आसमानी छीन ली आइने का टूट जाना इक अलामत है कि आज ज़िंदगी ने हम से अपनी हर निशानी छीन ली ज़ेहन के सारे दरीचों को मुक़फ़्फ़ल कर दिया ज़ब्त ने मुझ से मिरी जादू-बयानी छीन ली मुझ को जिन आँखों ने जीने का हुनर बख़्शा 'नज़ीर' आज उन आँखों ने मुझ से ज़िंदगानी छीन ली