रफ़ाक़तों के सफ़र में गुरेज़-पा सा लगा वो बेवफ़ा न सही फिर भी बेवफ़ा सा लगा न-जाने कैसी उदासी दिल-ए-तबाह में थी जो उस पे ज़ख़्म की सूरत तिरा दिलासा लगा वो जिस की ज़िंदा-दिली के हज़ार चर्चे थे वो तेरी बज़्म में कितना बुझा बुझा सा लगा ये ना-रसाई भी कितनी अजीब होती है समुंदरों का मुसाफ़िर था और प्यासा लगा बस एक लम्हा-ए-रुख़्सत के फैल जाने से मैं अपने आप को कितना थका थका सा लगा 'नज़ीर' तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ पे दुख न था लेकिन मुझे किसी का रवय्या ज़रा बुरा सा लगा