मौत आएगी जो रुस्वाई का सामाँ होगा चाक दिल होगा अगर चाक गरेबाँ होगा दिल को बहलाता हूँ ये कह के तिरी फ़ुर्क़त में पर्दा-ए-ग़ैब से ख़ुद वस्ल का सामाँ होगा हश्र में देखेंगे रहमत का तमाशा ज़ाहिद जब ख़तावार ख़ताओं पे पशेमाँ होगा मलक-उल-मौत को भी साथ गुल अपने लाना मुझ पे एहसान तेरा ऐ शब-ए-हिज्राँ होगा रहनुमाई रह-ए-उल्फ़त में जो ऐ ख़िज़्र करे वो फ़रिश्ता तो नहीं मुझ सा ही इंसाँ होगा हम न कहते थे कि है होश-रुबा हुस्न तिरा आइना देख न तू देख के हैराँ होगा मुझ से कहती है शब-ए-वस्ल परेशाँ-नज़री आप के दिल में भी शायद कोई अरमाँ होगा कू-ए-जानाँ की हवस तुझ को बहुत है ऐ 'शाद' ख़ाक के ज़र्रों की मानिंद परेशाँ होगा