मौत जादा है मौत मंज़िल है मौत ही ज़िंदगी का हासिल है ग़म के आलम में मुस्कुरा देना मुझ को आसाँ है तुम को मुश्किल है उस को ख़तरा है डूब जाने का जिस की कश्ती क़रीब-ए-साहिल है मेरा किरदार मेरा तर्ज़-ए-अमल मेरी महरूमियों में शामिल है मौत आती है इस तरह भी 'लईक़' कोई मक़्तूल है न क़ातिल है