मौत माँगूँ तो रहे आरज़ू-ए-ख़्वाब मुझे डूबने जाऊँ तो दरिया मिले पायाब मुझे मेरी ईज़ा के लिए मुर्दे में जान आती है काटने दौड़ती है माही-ए-बे-आब मुझे दहन-ए-गुर्ग से जीता जो बचूँ सहरा में ज़ब्ह करने के लिए मोल ले क़स्साब मुझे हूँ तसव्वुर में सफ़ा-ए-बदन-ए-यार के ग़र्क़ हल्क़ा-ए-नाफ़ हुआ हल्क़ा-ए-गिर्दाब मुझे मर्दुम-ए-दीदा-ए-क़ुर्बानी हूँ मैं दीवाना आए दरवाज़ा खुले बिन न कभी ख़्वाब मुझे ऐ फ़लक रहने दे उर्यां ही पस-अज़-मर्ग भी तू सोंपता क्या है कफ़न-दुज़द का अस्बाब मुझे नहीं रखते हैं अमीरी की हवस मर्द-ए-फ़क़ीर शेर की खाल ही है क़ाक़ुम-ओ-संजाब मुझे जोश से अश्कों के फिर जाएगा सर पर पानी खींच ले जाएगा दरिया में ये सैलाब मुझे दैर ओ काबा में उन आँखों से नहीं हल्क़ा-ए-दर कोई अबरू से दिखाता नहीं मेहराब मुझे फ़ुर्क़त-ए-यार में करती है क़यामत बरपा रोज़-ए-महशर से नहीं कम शब-ए-महताब मुझे मरज़-ए-इश्क़ से बच जाऊँ जो तुम दिलवा दो सदक़ा अपने लब-ए-जाँ-बख़्श का उन्नाब मुझे चैन लेने न दिया दर्द-ए-जुदाई ने कभी कब मैं सोया कि जगाया नहीं बद-ख़्वाब मुझे नहीं भोला है जुनूँ में वो हवास उड़ जाना याद है बरहमी-ए-सोहबत-ए-अहबाब मुझे नाम को मेरे भी अहबाब में अपने लिक्खे ज़र्रा समझा रहे वो महर-ए-जहाँ-ताब मुझे दिल ग़नी चाहिए गो हूँ मैं फ़क़ीर ऐ 'आतिश' शेर की खाल ही है क़ाक़ुम-ओ-संजाब मुझे