मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद चश्म-ए-बद-बीं को करे गर्दिश-ए-अय्याम सफ़ेद बस-कि उस बुत की तबीअत है ज़माने से ख़िलाफ़ सुब्ह पोशाक सियह है तो सर-ए-शाम सफ़ेद कौन सी शाम नहीं सुब्ह हुई ऐ मग़रूर एक दिन होती है ये ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम सफ़ेद क़तरा-ए-अश्क में सुर्ख़ी का कहीं नाम नहीं लहू तेरा भी हुआ ऐ दिल-ए-नाकाम सफ़ेद दिल की तस्कीं को मैं पैग़ाम सफ़ा का समझूँ पुर्ज़ा काग़ज़ का जो भेजे वो गुल-अंदाम सफ़ेद चाँदनी रात में वो माह जो याद आता है काटने दौड़ते हैं मुझ को दर-ओ-बाम सफ़ेद वस्ल की शब जो हुई सुब्ह यकायक तो हुआ मैं इधर ज़र्द उधर रू-ए-दिलाराम सफ़ेद निस्बत उस फ़ित्ना-ए-दौराँ से कोई अंधा दे यार की आँख सियह दीदा-ए-बादाम सफ़ेद किसी हालत में नहीं फ़िक्र से दुश्मन ग़ाफ़िल आफ़त-ए-मुर्ग़ है रंगीन हो बादाम सफ़ेद बस है इतनी ही ज़माना की दो-रंगी 'आतिश' मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद