मौत पर नानी के ग़म में बाल मुंडवाएँगे क्या फिर से बढ़ आने तलक नाना न मर जाएँगे क्या फिर से वो योगा की वर्ज़िश कर रहे हैं बाम पर फिर से लठ अपने मोहल्ले में वो चलवाएँगे क्या एक बोसा दे के वो बोले मज़ा आया नहीं एक बोसे में रुमूज़-ए-इश्क़ खुल जाएँगे क्या पहले दिल पर हाथ मारा फिर जिगर भी खा गए नोच कर वो अब हमारी बोटियाँ खाएँगे क्या बा'द मुद्दत के हुए हैं हम तुम्हारे मेहमाँ अब बिना खाए पिए यूँही सटक जाएँगे क्या आ रहे हैं वो पैसेंजर से इलाही ख़ैर हो देखिए हम ज़िंदगी में उन से मिल पाएँगे क्या चार दिन की ज़िंदगी में दो कटे ससुराल में दो दिनों के वास्ते 'मसरूर' घर जाएँगे क्या