मावरा हुए कब थे मात होने वाली थी रौशनी लरज़ती थी रात होने वाली थी ज़ेहन के वकीलों ने क्या जवाब देना था जिस्म के धुँदलकों तक ज़ात होने वाली थी लफ़्ज़ अपने होंटों से सरहदों पे उतरे थे फ़ासला ही बाक़ी था बात होने वाली थी आज फिर उदासी थी शाम से परिंदों में आज फिर दरख़्तों पर रात होने वाली थी अक्स था जो पानी से आइने में उतरा था मैं 'अमर' अकेला था मात होने वाली थी