तन से जुदा है साँस मगर ए'तिबार है बे-वक़्त हो चुका हूँ मगर इंतिज़ार है जज़्बात के हुबाब से किस को फ़रार है जो दायरा कटा है वो आधा हिसार है मुद्दत से बे-लिबास मिरी ज़िंदगी का राज़ अब तक मिरे वजूद पे किस का निखार है अज़्मत ने कर दिया है उसे किस क़दर बुलंद वो साँस भी जो ले तो लगे कारोबार है फूलों को रास आ गया बंजर हवा का साथ कहते हैं मुस्कुरा के ये अहद-ए-बहार है होना तो मेरा जब्र था लेकिन 'अमर' अभी जब तक मैं जी रहा हूँ मुझे इख़्तियार है