मय-कदा सा बना दिया घर में और साक़ी बिठा दिया घर में उस की ज़िद थी कि एहतिमाम करूँ मैं ने ख़ुद को बिछा दिया घर में तेरे पहरे जगह जगह पा कर ख़ुद को क़ैदी बना दिया घर में तेरी क़ुर्बत थी आग थी क्या थी मेरा सब कुछ जला दिया घर में डर के अपने ही साए से मैं ने हर दिए को बुझा दिया घर में ख़ुद से रू-पोश ही भला था मैं आइना क्यूँ लगा दिया घर में नोच कर अपने बाल-ओ-पर 'आदिल' मैं ने पिंजरा बना दिया घर में