मय-कशी अब मिरी आदत के सिवा कुछ भी नहीं ये भी इक तल्ख़ हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं फ़ित्ना-ए-अक़्ल के जूया मिरी दुनिया से गुज़र मेरी दुनिया में मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं दिल में वो शोरिश-ए-जज़्बात कहाँ तेरे बग़ैर एक ख़ामोश क़यामत के सिवा कुछ भी नहीं मुझ को ख़ुद अपनी जवानी की क़सम है कि ये इश्क़ इक जवानी की शरारत के सिवा कुछ भी नहीं