मय-ख़ाना है बिना-ए-शर-ओ-ख़ैर तो नहीं ऐ शैख़-ओ-बरहमन हरम-ओ-दैर तो नहीं क़ासिद को तक रहा हूँ बजाए जवाब-ए-ख़त कम्बख़्त ये न कह दे कहीं ख़ैर तो नहीं अपनों का शिकवा किस लिए आए ज़बान पर अहबाब के सितम सितम-ए-ग़ैर तो नहीं आपस में क्यूँ हैं बर-सर-ए-पैकार अहल-ए-शहर देखो यहाँ कहीं हरम-ओ-दैर तो नहीं ऐ शैख़ सिर्फ़ शिकवा-ए-पिंदार ज़ोहद है वर्ना मुझे जनाब से कुछ बैर तो नहीं महव-ए-ख़िराम ग़ुंचा-ओ-गुल देख-भाल कर पामाली-ए-बहार है ये सैर तो नहीं बंदा-नवाज़ आप और इज़्हार-ए-शुक्रिया 'एजाज़' आप का है कोई ग़ैर तो नहीं