मायूस हो क्यों ज़ुल्म की तरदीद भी होगी जब आज मोहर्रम है तो कल ईद भी होगी बे-ज़ौक़-ए-अमल दहर में कुछ भी नहीं मिलता जौहर है अगर तुम में तो ताईद भी होगी ख़ामोशी-ए-पैहम में बहर-हाल सुकूँ है तुम शिकवा ब-लब होगे तो तन्क़ीद भी होगी फिर भी न सँभल पाए तो तक़दीर तुम्हारी हर लग़्ज़िश-ए-पा पर तुम्हें ताकीद भी होगी सब मस्लहत-ए-वक़्त से उकताए हुए हैं दीवाना कोई उट्ठे तो तक़लीद भी होगी तख़्लीक़ को मिलती है जिला ख़ून-ए-जिगर से फ़नकार जो मुख़्लिस है तो तम्हीद भी होगी वा'दों पे ख़ुदायान-ए-सियासत के न जाना वा'दे ही नहीं वा'दों की तज्दीद भी होगी मज़मूँ के मुताबिक़ न हो गर लफ़्ज़ों की तरतीब लफ़्ज़ी ही नहीं मानवी ता'क़ीद भी होगी ये सोच कर एलान-ए-वफ़ा कीजिए 'तालिब' ताईद अगर होगी तो तरदीद भी होगी