मज़दूर के किसान के हालात पे लिखें आओ ग़ज़ल को अपनी नई बात पे लिखें अब दास्तान-ए-शीरीं-ओ-फ़रहाद छोड़ कर अशफ़ाक़ के भगत के ख़यालात पे लिखें अपनी क़लम को रंग-ए-सियासत से मोड़ कर कश्मीर पे असाम पे गुजरात पे लिखें इंसानियत के ज़िक्र का कुछ भी है गर ख़याल इस मुल्क के ग़रीब के जज़्बात पे लिखें इंसान ही तो प्यासा है इंसाँ के ख़ून का क़ातिल के डर से सहमी हुई रात पे लिखें