मेहरबाँ मुझ पे हो ऐ रश्क-ए-क़मर आज की रात

मेहरबाँ मुझ पे हो ऐ रश्क-ए-क़मर आज की रात
आ मिरे चाँद के टुकड़े मिरे घर आज की रात

राह भूल आया है इक चाँद इधर आज की रात
कैसी घर बैठी है दौलत मिरे घर आज की रात

यार आया नहीं क्यूँ कर हो बसर आज की रात
ता-क़यामत नहीं होने की सहर आज की रात

आप से आप वो आए मिरे घर आज की रात
दीन-ओ-दुनिया की नहीं मुझ को ख़बर आज की रात

क्यूँ ख़फ़ा मुझ से है वो रश्क-ए-क़मर आज की रात
बदली बदली नज़र आती है नज़र आज की रात

ऐ सनम बहर-ए-ख़ुदा आप ही लाएँ तशरीफ़
पुतलियों का है तमाशा मिरे घर आज की रात

सादगी है तिरी परियों की बनावट से सिवा
सुब्ह हो जाएगी इतना न निखर आज की रात

ज़ुल्फ़ सुलझाते हुए प्यार से वो देखते हैं
क्या मैं हो जाऊँगा मंज़ूर-ए-नज़र आज की रात

मेरी गुस्ताख़ी न याद आए इलाही हरगिज़
उन को बेकल न करे फ़िक्र-ए-कमर आज की रात

माँग मोती से भरी है न चढ़ो कोठे पर
तुम को लग जाएगी तारों की नज़र आज की रात

लैलतुल-क़द्र है ये या शब-ए-मेराज है ये
यार के ज़ानू पे अपना जो है सर आज की रात

वस्ल इक पर्दा-नशीं से है न हो ग़ैर का दख़्ल
शम्अ' तक आए न परवाने का पर आज की रात

मेहमाँ आप बस इतना ही रहें मेरे घर
कल का रोज़ आज का दिन चार पहर आज की रात

कल न दूँगा तुझे तकलीफ़ कुछ ऐसी वल्लाह
खोल दे बंद-ए-क़बा शर्म न कर आज की रात

जल्वा क्या ख़ूब है महताबी का महताबी पर
लुत्फ़-ए-मय-नोशी है ऐ रश्क-ए-क़मर आज की रात

बाग़-ओ-मय चाँदनी और वस्ल-ए-परी है मुझ को
पीते हैं मेरे अदू ख़ून-ए-जिगर आज की रात

गुल-बदन पहने हैं वो महरम-ए-कमख़ाब नहीं
नींद आने का मिरे दिल में है डर आज की रात

किस ज़बाँ से हो बयाँ आओ गले लग जाओ
दिल से दिल ही सुने कुछ दर्द-ए-जिगर आज की रात

बख़्त-ए-बे-दार से वो चाँद मिरे हाथ आया
आसमाँ तक हैं मिरे दस्त-निगर आज की रात

हाथ से ज़ुल्फ़ वो सुलझाएँ तो हो जाऊँ निहाल
देख लूँ नख़्ल-ए-तमन्ना के समर आज की रात

आशिक़-ए-अब्रू को क्या क़त्ल करोगे नादाँ
नन्ही तलवार जो है ज़ेब-ए-कमर आज की रात

यार की ज़ुल्फ़-ए-ज़र-अफ़शाँ मुझे याद आती है
क्या ही सीने से निकलते हैं शरर आज की रात

बशकन-ओ-बशकन मीना की सदा को सुन कर
आने पाए न कहीं मीम बसर आज की रात

गोरे गालों से न सरकाओ सियह-ज़ुल्फ़ों को
ख़ौफ़ है मुझ को न हो जाए सहर आज की रात

आशिक़-ए-ज़ुल्फ़ को दो बोसा-ए-ख़त्त-ओ-अब्रू
मुसहफ़-ए-रुख़ पे लिखूँ ज़ेर-ओ-ज़बर आज की रात

रक़्स इस ज़ोहरा-जबीं का है अदू के घर में
मेहर मीज़ाँ में है अक़रब में क़मर आज की रात

हाथ वो जोड़ते हैं सर है मिरा क़दमों पर
हो न समझाने मनाने में सहर आज की रात

ख़ुफ़्ता-बख़्ती से इलाही ये कहीं सो जाएँ
तोपची ज़ाहिद-ओ-मुर्ग़ान-ए-सहर आज की रात

गुल-ए-शब्बू है लजा लो गुल-ए-सूदी है गुलाब
शर्म-ओ-ग़ुस्सा है अरक़ में वो हैं तर आज की रात

आसमाँ पर है दिमाग़ अब नहीं मिलने के 'नसीम'
मेहरबाँ उन पे है इक रश्क-ए-क़मर आज की रात


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