कनार-ए-चश्म से अबरू तक आ गया काजल कि आज सेहन-ए-हरम में उतर गए बादल निगाह-ए-शौक़ गई जब भी ख़ुश-लिबासों तक दुरुस्त हो गईं ज़ुल्फ़ें सँवर गए आँचल न पूछ हुस्न के अंदेशा-हा-ए-रुस्वाई ज़हे जुनूँ कि जिसे याद मस्लहत न महल मगर किसी से नुमाइंदगी-ए-हक़ न हुई सनम-कदे ने तराशे हज़ार लात-ओ-हुबल ब-सद-नशात हैं वो मुझ पे मेहरबाँ 'मानी' नज़र नज़र में तराना नफ़स नफ़स में ग़ज़ल