में ऐसा ज़ौक़-ए-ज़ेबाइश ब-रू-ए-कार ले आया कि ख़ुद-आराई की ख़ातिर लिबास-ए-दार ले आया ज़मीं की मिहवरी गर्दिश से उम्रें घटती बढ़ती हैं गुज़रता वक़्त साए को पस-ए-दीवार ले आया मगर मुझ को ये एहसास-ए-नदामत मार डालेगा पराए पेड़ से फल तोड़ कर दो चार ले आया ये सारे लोग उस के हक़ में राय देने वाले हैं वो अपनी सारी तस्वीरें सर-ए-बाज़ार ले आया जहाँ से वापसी का रास्ता क़िस्मत से मिलता है वहाँ तक क़ाफ़िले को क़ाफ़िला-सालार ले आया विरासत में 'नसीम' इस से बड़ी जागीर क्या होगी मैं दिल की धड़कनों में अपनी माँ का प्यार ले आया