हुस्न जो रंग ख़िज़ाँ में है वो पहचान गया फ़स्ल-ए-गुल जा मिरे दिल से तिरा अरमान गया तू ख़ुदावंद-ए-मोहब्बत है मैं पहचान गया दिल सा ज़िद्दी तिरी नज़रों का कहा मान गया आइना-ख़ाना से होता हुआ हैरान गया ख़ुद-फ़रामोश हुआ जो तुम्हें पहचान गया अब तो मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त में चला आया हूँ उस से क्या बहस रहा या मेरा ईमान गया अपने दिल से भी छुपाने की थी कोशिश क्या क्या वो मिरा हाल-ए-मोहब्बत जिसे तू जान गया है यही हुक्म तो तामील करेंगे साहब न करेंगे तुम्हें हम याद जो दिल मान गया छिन गया कैफ़ बहकते हुए कम-ज़र्फ़ों में मय-कदे से भी गया मैं तो परेशान गया न मिला चैन किसी हाल में मजबूरों को मुस्कुराए तो हर इक शख़्स बुरा मान गया अपनी रौ में जो बहाए लिए जाता था हमें वो ज़माना वो तमन्नाओं का तूफ़ान गया झुक के चूमी जो ज़मीं उस की गली की हम ने कुफ़्र चीख़ा कि सँभालो मिरा ईमान गया तीलियाँ ख़ून से तर देखीं क़फ़स की जो 'सबा' अपनी सूखी हुई आँखों पे मिरा ध्यान गया