मेरा दुख भी कभी सुनेगा क्या बात मुझ से भी वो करेगा क्या आज का दिन मुझे क़यामत है और ये दिन कभी ढलेगा क्या हो चुका हूँ मैं जल के राख यहाँ राख का ढेर फिर जलेगा क्या अब भी उँगली पकड़ के वो मेरी सोचता रहता हूँ चलेगा क्या सामने मेरे कल जो बैठा था वो दोबारा कभी मिलेगा क्या मुद्दतों से है क़ैद पिंजरे में अब उड़ा दूँ तो वो उड़ेगा क्या इस तरफ़ 'सोज़' है मिरा सब कुछ उस तरफ़ दिल मिरा लगेगा क्या