तेरी क़ुर्बत के आरज़ी लम्हे मुझ को काफ़ी हैं सरसरी लम्हे तू भी हो और तेरी ख़ुश्बू भी लम्स के जावेदाँ ग़नी लम्हे पैर फिसला मिरा मैं डूब गया तेरी आँखों में दाख़ली लम्हे उस को आई हया तो कब आई मेरी जिंदड़ी के आख़िरी लम्हे लम्हा लम्हा तुझे सताएँगे ऐसे ज़ालिम हैं आदमी लम्हे यार से बच भी जाए तो 'अहमद' तुझ को खाएँगे साज़िशी लम्हे