मेरा फ़न मेरी ग़ज़ल तेरा इशारा तो नहीं हुस्न तेरा इसी पर्दे में ख़ुद-आरा तो नहीं दम-ए-ज़ुल्मत भी जो आँखों में है तस्वीर-ए-सहर हाथ कुछ इस में भी ऐ दोस्त तुम्हारा तो नहीं काकुल-ए-वक़्त में सुलझाव नज़र आता है आप ने ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ को सँवारा तो नहीं मेरे एहसास की वादी में शफ़क़ सी झलकी मुझ को दोशीज़ा-ए-फ़ित्रत ने पुकारा तो नहीं दामन-ए-हुस्न से कुछ और सुलग उठती है इश्क़ की आँख में शबनम भी शरारा तो नहीं मानता हूँ कि किनारे की तमन्ना है मुझे मैं ने तूफ़ाँ से किया फिर भी किनारा तो नहीं ख़ून-ए-गुलशन है पस-ए-पर्दा-ए-ऐलान-ए-बहार देखना ग़ुंचा-ए-नौरस में शरारा तो नहीं फिर नए सर से पर-ओ-बाल में जुम्बिश सी हुई नर्गिस-ए-शाहिद-ए-गुल का ये इशारा तो नहीं थम गई सौत-ए-जरस रुक गए रहबर के क़दम किसी गुम-कर्दा-ए-मंज़िल ने पुकारा तो नहीं मैं ने माना तिरे कूचे में क़दम उठ न सके ज़ीस्त की दौड़ में लेकिन कभी हारा तो नहीं