रास्तों में इक नगर आबाद है

रास्तों में इक नगर आबाद है
इस तसव्वुर ही से घर आबाद है

कैसी कैसी सूरतें गुम हो गईं
दिल किसी सूरत मगर आबाद है

कैसी कैसी महफ़िलें सूनी हुईं
फिर भी दुनिया किस क़दर आबाद है

ज़िंदगी पागल हवा के साथ साथ
मिस्ल-ए-ख़ाक-ए-रहगुज़र आबाद है

दश्त-ओ-सहरा हो चुके क़दमों की गर्द
शहर अब तक दोश पर आबाद है

बे-ख़ुदी रुस्वा तो क्या करती मुझे
मुझ में कोई बे-ख़बर आबाद है

धूप भी सँवला गई है जिस जगह
उस ख़राबे में सहर आबाद है


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