मिरा ग़म-गुसार कोई नहीं किसी लब पे आई दुआ नहीं मिरे चारागर तिरे पास भी मिरे दर्द-ए-दिल की दवा नहीं कभी साथ साथ है तू मिरे कभी दूर तक भी पिया नहीं मिरे हम-सफ़र तिरी दोस्ती का ये राज़ क्या है खुला नहीं तिरी आरज़ू मिरी ज़िंदगी तिरी जुस्तुजू मिरी बंदगी तिरी याद मेरी नमाज़ है कोई काम इस के सिवा नहीं वही बे-ख़ुदी वही सरख़ुशी वही बे-होशी वही गुमरही मुझे आप अपनी तलाश है मैं कहाँ हूँ मुझ को पता नहीं ये तो अपना अपना ख़ुलूस है ये तो अपना अपना सुलूक है कोई चाहने से गिरा नहीं कोई पूछने से उठा नहीं तुझे माँगने से मिलेगा क्या तिरा सर झुकाने से होगा क्या ये तो पत्थरों का जहान है यहाँ कोई तेरा ख़ुदा नहीं मैं ख़िज़ाँ-नसीब सदा रहा मैं भरी बहार में लुट गया मुझे रास आई न ज़िंदगी मुझे मिल के कुछ भी मिला नहीं न तो अब ख़ुशी की तलाश है न सुकून की मुझे आरज़ू यही ज़िंदगी का है फ़ैसला कि ख़ुशी भी ग़म के सिवा नहीं वो नफ़स नफ़स में ख़लिश तिरी वो तिरे ख़ुलूस की बे-रुख़ी तुझे हर क़दम यही ख़ौफ़ है तिरा ग़म तो मुझ से जुदा नहीं वही दिल में है वही लब पे है वही आँसूओं में रवाँ-दवाँ उसे कैसे भूलूँ 'सहर' बता जो मिरे नफ़स से जुदा नहीं