मिरा हाल मुझ से न पूछिए कि मैं ग़म से सीना-फ़िगार हूँ जिसे आसमाँ ने जला दिया उसी कारवाँ का ग़ुबार हूँ जहाँ जल रहा था कभी दिया जहाँ सदक़े होती थी कहकशाँ जिसे कोई देख के रो पड़े मैं वही तो संग-ए-मज़ार हूँ ये बहार और ये गुल्सिताँ मिरी तिश्नगी के हरीफ़ हैं मुझे बिजलियों की तलाश है कि मैं दिल-जलों की पुकार हूँ यही रास आई है दोस्ती कि फ़साना बन गई ज़िंदगी तिरे एक ग़म का सिला है ये कि हज़ार ग़म से दो-चार हूँ मिरी क़ब्र उन की गली में हो मिरा मुँह नहीं है ये दोस्तो कहीं डाल दो मिरी लाश को कि मैं नंग-ए-कूचा-ए-यार हूँ मैं फ़लक की आँख का नूर हूँ मैं किसी का हुस्न-ए-ग़ुरूर हूँ मैं फ़रेब-ए-इश्क़ की आबरू मैं मोहब्बतों का क़रार हूँ मिरी टूटी आस बँधाए कौन मिरा दर्द पूछने आए कौन जिसे तू ने दर से उठा दिया मैं वही तो 'नाज़िश'-ए-ज़ार हूँ