मैं दयार-ए-इश्क़ का राह-रौ मुझे ख़ौफ़-ए-शाम-ए-बला नहीं किसी राहबर पे नज़र नहीं किसी हम-सफ़र का गिला नहीं ग़म-ए-साज़गार का आइना न हरम न दैर न मय-कदे कि भटक रहा हूँ इधर उधर कहीं दिल-जलों का पता नहीं ये फ़रेब-ए-लज़्ज़त-ए-बे-ख़ुदी ये ग़रीब-ए-शहर की गुम-रही शब-ए-तार कितनी दराज़ है कहीं दूर तक भी दिया नहीं ये मिज़ाज-ए-इश्क़ ये सर-कशी कि ज़हे नवाज़िश-ए-आगही मैं हरीफ़-ए-शाम-ओ-सहर रहा मुझे वक़्त लूट सका नहीं