मिरा हुस्न-ए-तकल्लुम मेरे अंदाज़-ए-बयाँ तक है तुम्हारी दास्ताँ का रंग मेरी दास्ताँ तक है हक़ीक़त की निगाहों से जो देखें देखने वाले तो हर आँसू बग़ैर अल्फ़ाज़ की एक दास्ताँ तक है फिर उस के बा'द मैं ख़ुद मौत को आवाज़ दे लूँगा मुझे जीने की हसरत बस तुम्हारे आस्ताँ तक है मोहब्बत ने वो दामन दे दिया है मेरे हाथों में कि वुसअ'त जिस के अंदर वुसअ'त-ए-कौन-ओ-मकाँ तक है ज़मीं से आसमाँ तक है रसाई मेरी आहों की अभी तो हर शिकायत बाग़बाँ की बाग़बाँ तक है मिरी जानिब से जा कर आप उस मग़रूर से कह दें तिरी मंज़िल ज़मीं तक मेरी मंज़िल आसमाँ तक है मिरी मश्क़-ए-सुख़न जादू समो देती है शे'रों में ग़ज़ल की शान ऐ 'शाकिर' मिरे हुस्न-ए-बयाँ तक है