मेरा उस से जिस घड़ी भी सामना हो जाएगा ख़त्म अपने आप ज़ाहिद फ़ासला हो जाएगा ले गई थी मेरे बच्चों को वहाँ फ़िक्र-ए-मआ'श क्या ख़बर थी शहर सारा कर्बला हो जाएगा नाज़-बरदारी अभी से हुस्न की अच्छी नहीं वर्ना इक दिन ख़ुद की नज़रों में ख़ुदा हो जाएगा कितने लम्बे पाँव हैं आख़िर सुहानी धूप के शाम होते ही चलो ये फ़ैसला हो जाएगा जुस्तुजू में तुम कहाँ सूरज की यारो आ गए वो अगर मिल भी गया फिर लापता हो जाएगा दोस्तो तन्हाई के सहरा से मुझ को ले चलो वर्ना इक दिन देखना 'ज़ाहिद' फ़ना हो जाएगा