मेरे अल्फ़ाज़ में असर रख दे सीपियाँ हैं तो फिर गुहर रख दे बे-ख़बर की कहीं ख़बर रख दे हासिल-ए-ज़हमत-ए-सफ़र रख दे मंज़िलें भर दे आँख में उस की उस के पैरों में फिर सफ़र रख दे चंद-लम्हे कोई तो सुस्ता ले राह में एक दो शजर रख दे गर शजर में समर नहीं मुमकिन उस में साया ही शाख़-भर रख दे कल के अख़बार में तू झूटी ही एक तो अच्छी सी ख़बर रख दे तू अकेला है बंद है कमरा अब तो चेहरा उतार कर रख दे