मिरे दीवार-ओ-दर आँसू मिरा रख़्त-ए-सफ़र आँसू तिरा दामन न होगा गर तो जाएँगे किधर आँसू पलट आई दुआ फिर क्यों कोई ख़ुर्शीद माँगा था मगर क्या अर्श तक जाते मिरे बे-बाल-ओ-पर आँसू वो पत्थर दिल मुझे महफ़िल में हँसते देख हैराँ था मैं दानिस्ता ही रख आई थी उस दिन अपने घर आँसू हवा थी ऐसी ग़ुस्सैली कि बादल ले उड़ी सारे ये ग़म सहने में सूखे हैं ज़मीं के किस क़दर आँसू शब-ए-तन्हा नज़र आता है तुझ में अक्स ये किस का मिरी आँखों में रहता है तो मेरी फ़िक्र कर आँसू