कुछ भी ऐसा नहीं जो बस में है अब रिहाइश मिरी क़फ़स में है तन में हरकत सकत नहीं कोई और न आवाज़ तक नफ़स में है ख़ुशबुएँ ये विलायती कैसी बात कुछ और इत्र-ए-ख़स में है मो'तरिफ़ रूह तेरी अज़्मत की नाम तेरा हर एक नस में है अनगिनत ख़ूबियाँ गुलाबों में रंग में हैं महक में रस में है