मेरे दुख की दवा भी रखता है By Ghazal << न दरमियाँ न कहीं इब्तिदा ... मेरा वहम-ओ-गुमान रहने दे >> मेरे दुख की दवा भी रखता है ख़ुद को मुझ से जुदा भी रखता है माँगता भी नहीं किसी से कुछ लब पे लेकिन दुआ भी रखता है हाँ चलाता है आँधियाँ लेकिन मौसमों को हरा भी रखता है जब भी लाता है ग़म पुराने वो उन में हिस्सा नया भी रखता है Share on: