मिरे गुमाँ से भी ऊँची उड़ान तक पहुँची मिरी ग़ज़ल की ज़मीं आसमान तक पहुँची वो बात जिस की ख़बर तक न थी ज़माने को तुम्हारी वज्ह से दुनिया के कान तक पहुँची तसव्वुरात की इमदाद हो गई हासिल तुम्हारे वस्ल की हसरत उड़ान तक पहुँची हमारे इश्क़ की ता'लीम ना-मुकम्मल थी मगर हमारी वफ़ा इम्तिहान तक पहुँची 'हिलाल' और ज़ियादा हो तेरा ज़ोर-ए-क़लम ये शायरी तिरी दिल की ज़बान तक पहुँची