मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ तुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ दश्त से दूर भी क्या रंग दिखाता है जुनूँ देखना है तो किसी शहर में दाख़िल हो जाओ जिस पे होता ही नहीं ख़ून-ए-दो-आलम साबित बढ़ के इक दिन उसी गर्दन में हमाइल हो जाओ वो सितमगर तुम्हें तस्ख़ीर किया चाहता है ख़ाक बन जाओ और उस शख़्स को हासिल हो जाओ इश्क़ क्या कार-ए-हवस भी कोई आसान नहीं ख़ैर से पहले इसी काम के क़ाबिल हो जाओ अभी पैकर ही जला है तो ये आलम है मियाँ आग ये रूह में लग जाए तो कामिल हो जाओ मैं हूँ या मौज-ए-फ़ना और यहाँ कोई नहीं तुम अगर हो तो ज़रा राह में हाइल हो जाओ