मेरे होंटों पे अजब आह-ओ-फ़ुग़ाँ रहने दिया उस ने फ़ुर्क़त में भी ख़ामोश कहाँ रहने दिया ता कि जज़्बात-ज़दा क़ैस नसीहत पकड़ें दश्त वालों ने मिरा नाम-ओ-निशाँ रहने दिया मैं ने इज़हार के सब रस्ते मुक़फ़्फ़ल कर के जो भी मंज़र था वो दुनिया पे अयाँ रहने दिया कार-ए-तख़लीक़ में कोई तो ज़रूरत होगी उस ने ईक़ान के पर्दे में गुमाँ रहने दिया मुझ को आसानी नज़र आती थी उस में 'आसिम' आशिक़ी कर ली सभी कार-ए-जहाँ रहने दिया