मेरे कहने से तो दिल उन पर मिरा आया न था आईने को मैं ने ख़ुद पत्थर से टकराया न था जो हुआ जो कुछ हुआ मेरी ख़ता मेरा क़ुसूर तोड़ कर अहद-ए-वफ़ा क्या वो भी पछताया न था मैं ने देखी है अमीर-ए-शहर की वो मुफ़्लिसी दौलत-ए-दुनिया थी लेकिन ग़म का सरमाया न था हम ने सोचा अब फ़राज़-ए-दार से देखें उसे ज़िंदगानी का कोई मंज़र हमें भाया न था तुझ को ही मक़्सूद थी अपने लिए कुछ बंदगी वर्ना आदम ने तिरी जन्नत को ठुकराया न था