मेरे कश्कोल में बस सिक्का-ए-रद है हद है फिर भी ये दिल मिरा राज़ी-ब-मदद है हद है ग़म तो हैं बख़्त के बाज़ार में मौजूद बहुत कासा-ए-जिस्म में दिल एक अदद है हद है आज के दौर का इंसान अजब है यारब लब पे तारीफ़ है सीने में हसद है हद है था मिरी पुश्त पे सूरज तो ये एहसास हुआ मुझ से ऊँचा तो मिरे साए का क़द है हद है मुस्तनद मो'तमद-ए-दिल नहीं अब कोई यहाँ महरम-ए-राज़ भी महरूम-सनद है हद है मैं तो तस्वीर-जुनूँ बन गया होता लेकिन मुझ को रोके हुए बस पास-ए-ख़िरद है हद है रोज़-ए-अव्वल ही में हर हद से गुज़र बैठा और चीख़ता रह गया हमदम मिरा हद है हद है कब तलक ख़ाक-बसर भटके भला बाद-ए-सबा अब तो हर शाख़ पे फूलों की लहद है हद है रंग-ए-इख़लास भरूँ कैसे मरासिम में 'नदीम' उस की निय्यत भी मिरी तरह से बद है हद है