मेरे ख़्वाबों को समुंदर में बहा देता है वो मोहब्बत भी फ़राएज़ में निभा देता है फ़ैसला तुम ने ही करना है मगर जाने क्यूँ कोई लम्हा तुम्हें मंसब से हटा देता है मेरे तो अपने रवय्ये ही मिरे दुश्मन हैं जो भी मिलता है वो जीने की दुआ देता है उस से ख़ुद अपनी भी सूरत नहीं देखी जाती वक़्त इंसान को कुछ ऐसा बना देता है हाँ ये सच्चाई मोहब्बत मिरे नारे थे मगर हर बड़ा बोल बड़ी सख़्त सज़ा देता है आज देखूँ तो ज़रा दरिया-दिली भी उस की वो मुझे ज़िंदगी भर के लिए क्या देता है