मिरे ख़िलाफ़ ज़बाँ अपनी खोलने वाले अजीब लोग हैं राज़ों को ढूँडने वाले शिकम में बुग़्ज़ रखें और आँख का रोज़ा समाअतों में सभी शहद घोलने वाले तुम्हें ख़बर ही नहीं है अज़ाब-ए-क़ौम-ए-शुऐब अक़ीदतों को तराज़ू में तोलने वाले डरा दिया है जो साँपों का वसवसा दे कर मकीं नहीं थे ख़ज़ीने को लूटने वाले तिरे क़दम से मैं पहले क़दम नहीं रखता मिरे अज़ीज़ निशाँ मेरा खोजने वाले वो शाहज़ादी इसी वास्ते सँभलती रही कि बीच राह में पाँव थे डोलने वाले