मिरे ख़ुलूस का जब आप को ख़याल नहीं मुझे भी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का कुछ मलाल नहीं हैं ज़ख़्म-ए-शौक़ मिरी ज़िंदगी का सरमाया हूँ मुतमइन कि मुझे फ़िक्र-ए-इंदिमाल नहीं हवादिसात-ए-ज़माना मिरी ज़रूरत हैं क़दम क़दम पे मिले हैं ये ख़ाल-ख़ाल नहीं मिले जो ख़ाक में सरसब्ज़ हो वही दाना है पाएमाल वही जो कि पाएमाल नहीं तू ख़ाक है तिरी अज़्मत है ख़ाकसारी में ज़वाल उस का मुक़द्दर जिसे ज़वाल नहीं हर एक गाम उजाला हर इक क़दम साए जहान-ए-ग़म में कोई हादिसा मुहाल नहीं नसीब होता कोई ग़म तो जागती क़िस्मत किसी को उस से तो 'नाशाद' क़ील-ओ-क़ाल नहीं