मेरे लबों पे आज क़यामत का वक़्त है नेज़े पे सर है और तिलावत का वक़्त है वज्ह-ए-शिकस्त-ए-जंग की तफ़तीश फिर कभी पहले सिपाहियों की अयादत का वक़्त है जुगनू भी घर से निकलें सितारे भी आएँ साथ मिट्टी के इक दिए पे मुसीबत का वक़्त है सूरज जला रहा है गुनाहों की धूप में दरिया बता रहा है नदामत का वक़्त है होने लगी है तंग मिरे जिस्म पर ये ख़ाक या'नी कि अब ज़मीन से हिजरत का वक़्त है सब्ज़े भी जल चुके हैं परिंदे भी उड़ गए ऐसा मिरे मकान पे ग़ुर्बत का वक़्त है मैं जा रहा हूँ अपना सुख़न बेचने 'सलीम' यारो ख़ता मुआ'फ़ तिजारत का वक़्त है