रविश-ए-कार-ए-मोहब्बत के सबब जानता हूँ किस तआ'क़ुब में हैं अहबाब मैं सब जानता हूँ जा-ब-जा घर में ये खोदी हुई मिट्टी है सुबूत किस को कितनी है ख़ज़ाने की तलब जानता हूँ मैं ने रोग़न की तिजारत तो नहीं की लेकिन शहर के सारे चराग़ों के नसब जानता हूँ मुझ को आता है सितारों की लिखावट पढ़ना हर्फ़-दर-हर्फ़ तिरा नामा-ए-शब जानता हूँ क्या करूँ और समझ कर कि तिरे बारे में जितना मालूम है उतना भी मैं कब जानता हूँ लाख ना-वाक़िफ़-ए-उर्दू हूँ मगर ऐ नाक़िद गुफ़्तुगू कर सकूँ इतना तो अदब जानता हूँ