मिरे लहू की तमाज़त है और अकेला मैं अँधेरी शब की मसाफ़त है और अकेला मैं मिरे क़बीले में भी सच का क़त्ल होता है वही पुरानी रिवायत है और अकेला मैं नए शुऊ'र का इंसान मुझ में ज़िंदा है ज़माने भर की मलामत है और अकेला मैं मैं अपनी जंग में नाकाम हो नहीं सकता मिरे ख़याल की ताक़त है और अकेला मैं तलाश का ये सफ़र इतना सहल भी तो नहीं कोई बला कोई दहशत है और अकेला मैं मिरी ग़ज़ल ये मिरा फ़न ये शायरी 'शौकत' नए दिनों की बशारत है और अकेला मैं