मौसम ऐसा हो जाता है मंज़र ऐसा हो जाता है दरिया बहता दरिया लोगो पत्थर ऐसा हो जाता है लोग घरों में रहते रहते बे-घर भी तो हो जाते हैं अक्सर यूँ भी हो जाता है अक्सर ऐसा हो जाता है हू-या-हू के तार बजें तो दुनिया छम-छम नाच उठती है इस लम्हा तो हर इंसान क़लंदर ऐसा हो जाता है इक मौसम जो आँख के अंदर रौशनियाँ सी भर देता है आख़िर आँख बुझा देता है काफ़िर ऐसा हो जाता है दर्द का मौसम जब खुलता है बारिश ऐसी हो जाती है दिल का ख़ाली सहरा सब्ज़ समुंदर ऐसा हो जाता है निगह हसीन अगर हो 'शौकत' हुर के जौहर खुल जाते हैं झूट का चेहरा इब्न-ए-साद के लश्कर ऐसा हो जाता है