मेरे मुस्तक़बिल में भी कुछ लिक्खा क्या तुम ने मेरे बारे में कुछ सोचा क्या मैं तो तुम को अपना मान के चलता हूँ दिल में तुम भी रखते हो कुछ ऐसा क्या ये तेरा है ये मेरा है छोड़ो भी इन बे-कार की बातों में है रक्खा क्या तुम ने ही तो बोला था ख़ामोश रहो ऐसे में कुछ कहता मैं तो कहता क्या जीते जी सब कुछ पाने को मरते हैं मर जाने पर हाथ में कुछ भी रहता क्या