मेरे सर में जो रात चक्कर था उस के ज़ानू पे ग़ैर का सर था अपने घर उन को क्या बुलाते हम बोरिया भी नहीं मयस्सर था ज़ब्त-ए-दिल पर भी उस की महफ़िल में अपना रूमाल अश्क से तर था जान देने में सोच क्या करते मुफ़्लिसी पर भी दिल तवंगर था ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ मौत जब आई सब बराबर था आप जब तक न ले चुके थे दिल कुछ मिज़ाज और बंदा-परवर था हिज्र लाहिक़ हुआ विसाल के ब'अद क्या ही उल्टा मिरा मुक़द्दर था जौर-ए-आदा की ताब क्या लाता दिल-ए-कम-बख़्त नाज़-परवर था सोहबत-ए-हूर से हुई नफ़रत मैं जो तेरी अदा का ख़ूगर था है 'असर' या नहीं ख़ुदा जाने सुनते हैं उस का हाल अबतर था