मिरे सीने में रह कर ख़ुद मुझी से दुश्मनी कब तक दिल-ए-नादान खाएगा फ़रेब-ए-दोस्ती कब तक मिरे एहसास के सहरा जलेगा तू यूँही कब तक बुझाऊँ रोज़ अश्कों से मैं तेरी तिश्नगी कब तक अलम-बरदार हो तुम लइसा-लिल-इंसान के लोगो रहोगे तुम ज़माने में शिकार-ए-बे-हिसी कब तक मसाइल का तुम्हारे हल नहीं तक़लीद-ए-मग़रिब में किसी गुम-कर्दा मंज़िल से उमीद-ए-रहबरी कब तक 'ग़ज़ाली' 'राज़ी'-ओ-'रूमी' की तख़लीक़ात भी देखो करोगे मार्क्स हेगेल डार्विन की पैरवी कब तक झुकाओ सर ख़ुदा के सामने ये सर-कशी छोड़ो जबीन-ए-किब्र आख़िर बे-नियाज़-ए-बंदगी कब तक जहान-ए-चंद-रोज़ा में किसी से दुश्मनी कैसी हमारी ज़िंदगी कितनी हमारी दुश्मनी कब तक जफ़ा-पेशा ज़माने में वफ़ा की जुस्तुजू 'नश्तर' गुज़ारेगा सराबों के सहारे ज़िंदगी कब तक