उस के करम भी मो'जिज़े अक्सर बने रहे क़तरे भी देखिएगा समुंदर बने रहे ये जानते थे वो कभी वापस न आएगा फिर भी हम इंतिज़ार का पैकर बने रहे अपनी रविश से सीख ली दुश्मन ने दोस्ती हम अपने फ़न के देखिए आज़र बने रहे इंसान ने ही बेच दिया मज़हब-ए-वफ़ा इंसान ही जहाँ में पयम्बर बने रहे अब के इन आँधियों का निराला मिज़ाज था जो सिर्फ़ काग़ज़ों के थे वो घर बने रहे पहुँचे थे उस के पास लिए सैंकड़ों गिले लेकिन हम उस के सामने पत्थर बने रहे हम को तो रौशनी भी मयस्सर न हो सकी यूँ तो तमाम उम्र ही 'अनवर' बने रहे